Wednesday 12 February 2020

कृषि (खेती) के औजार (राजस्थान)


कृषि (खेती) के औजार (राजस्थान)
Traditional equipment of agriculture in Rajasthan

"हल"- जुताई के लिए
"नाइ" - बुआई के लिए

बैलों को जोड़ने के लिए इन दोनों के ही आगे "जुड़ी" होती है. जुडी को हल की डंडी से जोड़ने के लिए "पांचाली" का उपयोग होता है. बैलों को जुडी से बाँधने के लिए शन से बनी हुई "जोत" होती है. हल के नीचे "फल' होता है. बैलों को जोतने की रस्सी को "रास" कहते हैं.

जुताई करने के लिए "कुली" होती है जिसमे दो दांते लगे होते हैं उसके आगे "पाश" (लोहे की प्लेट) लगी होती है. दांते और पाश को जोड़ने के लिए "कुंडले" (लोहे की रिंग) होते हैं.

किसानों के हाथ में "परानिया" होता है, इसमें एक कील लगी होती है उसे "आर" कहते हैं. यह बैल को हांकने के काम आता है. बैल के मुँह में बाँधने के लिए "छीका" होता है जिसे "मोहड़ी" कहते हैं. बैल के नाक में छेद कर डोरी बांधते हैं उसे "नाथ" कहते हैं. बैल को "खूंटे" से बाँधने की रस्सी को "जेवड़ा" कहते हैं.

अनाज लाने ले जाने के लिए बैलगाड़ी होती है. उसके पहियों में "आरे" लगे होते हैं. गाडी में चरों तरफ डंडे लगे होते हैं उसे "धाँसिया" कहते हैं. धाँसिये के अंदर "पगलेट" होता है. उसमे सूत का "दोरडिया" बिछाते हैं.

"तिपहिया या तौया" - इसपर खड़े होकर गेहूं का भूसा अलग करते हैं. गेहूं बरसानेवाली छोटी टोकरी को 'थांवला" और भूसा भरने वाली बड़ी टोकरी को "डाला" कहते हैं. भूसे को इकठ्ठा करने के लिए "हांकड़ी" (दन्ताली) और रोकने के लिए "बागड़" का उपयोग होता है.