Wednesday 25 January 2017

बढ़ई (सुतार) और उसके औजार

बढ़ई (सुतार) और उसके औजार

बढ़ई को सुतार, खाती आदि नामों से जाना जाता है और ये भारत में परंपरागत रूप से लकड़ी के सामान बनाने का काम करते हैं. अंग्रेजी भाषा में इन्हें Carpenter कहते हैं. लकड़ी के दरवाजे, खिड़कियां, पलंग, अलमारी, कुर्सी, मेज, आदि से लगाकर अन्य शिल्पकारों और मजदूरों के लकड़ी से बननेवाले औजार ये ही लोग बनाया करते हैं. लड़ी से बननेवाले नाव हों, बैलगाड़ी या इक्का-तांगा सबमे इनकी कारीगरी दिखती है।  ये लोग लकड़ी पर नक्कासी का काम भी करते हैं.

बढ़ई  के औजार 
इनके मुख्य औजारों में आरी, हथौड़ी, रंदा आदि का नाम गिना जा सकता है।  आरी लकड़ी काटने के काम आती है और हथोड़े का प्रयोग ठोकने के लिए होता है. रंदा से घिस कर लकड़ी को चिकना किया जाता है. लकड़ी को छिलने के लिए बढई की छेनी का भी इस्तेमाल किया जाता है. यह आम छेनी से थोड़ा अलग और छुड़ा एवं धारदार होता है. कुल्हाड़ी से लकड़ी के बड़े कुंदों को काटने का काम किया जाता है.  लकड़ी को घिस कर चिकन करने के लिए रंदे के अलावा रेजमाल भी काम में लिया जाता है.

छेद (सुराख़) करने के लिए रस्सी के सहारे घूमने वाली छेद करने का यंत्र काम में लिया जाता है जिसका हिंदी नाम किसी पाठक को पता हो तो बताने का कष्ट करें. स्क्रू (पेंच) कसने के लिए पेचकस का इस्तेमाल होता है और कील निकलने के लिए प्लायर (हिंदी नाम?) का.

भारतीय शिल्प, शिल्पी एवं उनके औजार नाम के इस ब्लॉग में अलग अलग पोस्ट के माध्यम से भिन्न भिन्न प्रकार के कारीगरों/शिल्पियों के काम के औजारों का हिंदी/देसी नाम संकलित करने का प्रयास किया जा रहा है. इस सम्वन्ध में आपको कोई जानकारी हो तो कॉमेंट में लिख कर जानकारी साझा करने का कष्ट करें.

ज्योति कोठारी

Monday 23 January 2017

राजमिस्त्री और उसके औजार

राजमिस्त्री और उसके औजार (भारतीय शिल्प और शिल्पी)

भारत में मकान बनाने वाले कारीगरों को राजमिस्त्री कहते हैं और वो अपने काम में बहुत ही दक्ष होते हैं.  येलोग बहुत ही साधारण औजारों से असाधारण शिल्पों का निर्माण करते करते थे. सैकड़ों साल पहले से ही उन्होंने बहुमंजिला गगनचुम्वी इमारतें बनाना शुरू कर दिया था. वे गरीब की झोपडी से ले कर राजाओं के महल, विशाल देवालय (मंदिर), मस्जिद, गुरूद्वारे, और ताजमहल जैसे मक़बरे तक बनाते थे. इन लोगों ने सुरक्षा की दृष्टि से बेजोड़ किलों (दुर्ग), भण्डार और नदियों पर पुल भी बनाये हैं. कुएं और बावड़ियां भी ये ही लोग बनाते थे. स्थापत्य कला के अनेक निदर्शन भारत के कोने कोने में बिखरे हुए हैं.  

भव्य मंदिर 

उत्तुंग तोरणद्वार 

पुराणी हवेली 
 इन राज मिस्त्रियों का मुख्य औजार करनी था जिसके सहारे वे चुनाई भी करते थे और पलस्तर भी. चुनाई को गंथनि भी कहते थे. चुना-सुरकी हो या  बालू/रेत-सीमेन्ट करनी के सहारे ये मसाला भी बनाते थे. छोटी मोती चीजों को तोड़ने में भी करनी काम आती थी. मसाला (गारा) मिलाने के लिए लोहे की कढ़ाई (तगारी) का इस्तेमाल होता था. इन मसालों से ही चुनाई का काम होता था. हथौड़ा/हथोडी इनका एक और प्रमुख औजार होता था जिससे वे पत्थर और ईंट तोड़ा करते थे. कील ठोकने के लिए भी हथौड़ी ही काम आती थी.

किसी मजबूत या मोटी दीवार आदि को तोड़ने के लिए शब्बल काम में लेते थे, यह लोहे का मोटा और मजबूत धारदार डंडे जैसा होता था. किसी भारी चीज को उठाने के लिए इसे "Lever" की तरह भी काम में लिया जाता था. छोटी चीजों को तोड़ने या काटने के लिए छेनी काम में ली जाती थी. छोटी छेनी, जिससे पत्थर तरासने का काम होता था उसे टांची कहते थे. रेट बगैरह छानने के लिए चलनी काम आती थी. ज्यादा मात्रा में मसाला मिलाने और मिटटी की खुदाई करने के लिए कुदाल या कुदाली काम में लेते थे. फावड़ा भी कुदाल जैसा ही होता था. पथरीली जमीन को खोदने में गैंती काम आती थी. मार्बल या अन्य पत्थर काटने के लिए आरी भी काम में ली जाती रही है.

पलस्तर को सही और समरूप करने के लिए लकड़ी के जिस समतल पाटे पर एक हैंडल जोड़ कर जो औजार बनाया जाता था उसे रूसा कहते थे. इसी तरह नापने के लिए लकड़ी के स्केल के अलावा सूत का भी इस्तेमाल किया जाता था. सूत के नीचे कोई भारी वजन बांध कर इसे दिवार की सिधाई नापने के लिए भी  काम में लिया जाता था।

पुताई करने के लिए कुंची काम में ली जाती थी जो की Brush जैसा होता था. उसमे जो मुंज या पटसन बांधा जाता था उसे जेवड़ी कहते थे.

ऊँची दीवारों पर चढ़ने के लिए बांस की जो सीढ़ी बनाई जाती थी उसे पेढ़ा या भारा कहा जाता था. छत भरने में भी इसका इस्तेमाल होता था और उसमे बल्लियों के साथ लकड़ी का पाटा लगाया जाता था. मुख्य कारीगर के साथ सहायक के रूप में काम करनेवाले मजदुर बेलदार कहलाते थे. बंगाल में इन्हें पायेट कहा जाता है.

ज्योति कोठारी